नामकरण संस्कार
नामकरण संस्कार अपनी कुल परम्परा अनुसार सूतक समाप्ति के पश्चात् जन्मदिन से १०, ११, १२, १३, १६, १९ या २२वें या ४१वें तथा विपणि में दिए गए शुभ मुहूर्तों में नामकरण संस्कार करना चाहिए। मनुष्य के बाह्य एवं आन्तरिक व्यक्तित्व के विकास में उसकी प्रसिद्ध नाम राशि का विशेष महत्त्व होता है। व्यापार, व्यवहार, सर्विस, संकल्पपूर्वक दान दीक्षा-मंत्र-सिद्धि आदि कार्यो में नाम की ही प्रधानता रहती है। नामकरण संस्कार अपने कुल के वृद्ध व्यक्ति, महात्मा, गुरु, पण्डित, ज्योतिषी, पिता या कुल पुरोहित जी से परामर्श के अनुसार अथवा जन्म- नक्षत्र के चरणाक्षर से प्रारम्भ होने वाले अक्षर से युक्त किसी महान् पुरुष, कुलदेवता, ईश्वर या देववाचक, मंगल/कल्याणार्थक तथा कानों को मधुर लगने वाले अक्षर वाला नाम रखना चाहिए। यदि जन्म नक्षत्र/राशि पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो, तो लग्न, लग्नेश या भाग्येश ग्रह से सम्बन्धित राशि वाले अक्षर से प्रारम्भ होने वाला नाम रखना चाहिए। उस दिन किसी ब्राह्मण द्वारा स्वास्ती वाचन, पंचदेव एवं नवग्रह पूजनादि करवा कर ब्राह्मण का भोजन, वस्त्र, फल दक्षिणा आदि द्वारा सत्कार करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए आप हमारे ब्राह्मणों से परामर्श ले सकते हैं।