मांगलिक दोष एवं निवारण
मांगलिक दोष के बारे में आज के समय मै सभी ज्योतिषीजन परिचित है फिर भी कुछ योग है जो मांगलिक दोष को समाप्त करते हैं। यदि दोष भंग योग बन रहा हो तो फिर अशुभ एवं वैधव्यादि दुःख नहीं होते, इसी विषय को लेकर आपके सुविधार्थ मांगलिक क्या है हम आपको बताते है, उस दोष को मान्यता कहां तक रहेगी और दोष भंग कैसे होता है?
१. मांगलिक कोन ओर केसे होता हैं?
जिस जातक की जन्मपत्री मै, लग्न/चन्द्र कुण्डल्यादि में मंगल ग्रह लग्न से लग्न में १. चतुर्थ, सप्तम ७, अष्टम ८ तथा द्वादश १२ इन भावों में कहीं भी स्थित हो तो उसे मांगलिक कहते है।
२. गोलीया मंगल ‘पगड़ी मंगल’ तथा चूनड़ी मंगल किसे कहते हैं?
जिस जातक को जन्म कुण्डली के १, ४, ७, ८, १२वें भाव में कहीं पर मंगल स्थित हो उसी मंगल के साथ शनि सूर्य राहु पाप ग्रह भी बैठे हों तो वह पुरुष गोलीया मंगल, स्त्री जातक चूनड़ो मंगल हो जाती है अर्थात् द्विगुण मंगली इसो को माना जाता है।
३. मांगलिक कुण्डली हो तो क्या दोष होता है?
वर की कुण्डली मांगलिक हो तो कन्या कन्या को अनेकों प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है घरेलू वाद विवाद एवं शारीरिक व मानसिक पीड़ा होती है कन्या मांगलिक हो तो वर पति के लिए कष्टकारी एवं पति को स्वास्थ्य की हानि धन की हानि मानसिक परेशानी आदि का सामना करना पड़ता है।
लग्ने व्यये च पाताले जामिने चाष्टमे कुजः ।
कन्या भर्तुर्विनाशाय भर्ता कन्या विनाशदः ।।
४. मांगलिक कुण्डली कैसे मिलाए-:
वर कन्या दोनों को कुण्डली ही मांगलिक हो तो विवाह शुभ और दाम्पत्य जीवन आनंदमई एवं सुखमय रहता है। एक सादी एक मंगली ऐसे विपरीत गुणों वाली कुण्डलियां नहीं होनी चाहिए। दोनों ही जातक जातिका मांगलिक होते हैं तो मंगल की अशुभता दूर हो जाती है।
५. एक मांगलिक हो दूसरा मांगलिक ना हो “अमंगली” हो परन्तु विवाह शुभ हो जाये?
मांगलिक कुण्डली के सामने यदि मंगल वाले स्थान को छोड़कर दूसरे स्थानों में पाप ग्रह हों तो दोष भंग हो जाता है। उसे फिर मंगली दोष रहित मानी जाती है तथा केन्द्र में चन्द्रमा १, ४, ७, १०वें घर में हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है। शुभ ग्रह एक भी यदि केन्द्र में हो तो सर्वारिष्ट भंग योग बना देता है। इसके फलस्वरूप मंगल का निराकरण हो जाता है।
शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का सम्बन्ध करें, फिर भी यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाये कि कोई वर कन्या सभी तरह से विवाह योग्य है तथा दोनों पक्ष के अभिभावक वर कन्या सभी एक दूसरे से पूर्ण संतुष्ट है जैसा आजकल प्रायः सह शिक्षा सह व्यवसायिकों में हो जाता है, फिर यदि कुण्डलीस्थ मंगली अमंगली का विचार उत्पन्न हो जाये तो वहां १, ४, ७, ८, १२ भावों में कहीं मंगल होने से मांगलिक है यह सम्बन्ध श्रेष्ठ नहीं ऐसा नहीं कहना चाहिए इसके लिए लिखा है-
मांगलिक से मांगलिक मिलान कर लें, तथा अन्य भी कई कुयोग हैं जैसे वैधव्य, विषांगना आदि दोषों को दूर रखें, यदि ऐसी भी स्थिति हो तो अश्वस्थ “पीपल” विवाह, कुम्भ विवाह, शालिग्राम विवाह तथा मंगल यन्त्र का पूजन और मंगला गौरी का व्रत, पूजन आदि कराके कन्या का सम्बन्ध अच्छे सुयोग्य ग्रह योग वाले वर के साथ करें। मांगलिक दोष तो प्रायः
देख लेते हैं, पर मंगलिक होते हुए भी वह अशुभ नहीं है अर्थात् शुभ है यह कम ही जानते हैं। इसकी जानकारी अत्यावश्यक है। मंगलिक/डबल मंगलिक जातक हो तो परस्पर कुण्डलियों के ग्रहों का अध्ययन करके ही निर्णय करना चाहिए, हमारे शास्त्रों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं कि मंगलिक वर के साथ अथवा मंगल कन्या के साथ सादे वर का सम्बन्ध भी श्रेष्ठ रहता है, यदि वर या कन्या की कुण्डली के अन्य ग्रहों की स्थिति योग शुभ हो।