गोधूलि काल
विवाह मुहूर्तों एवं अन्य शुभ कार्यों में क्रूर ग्रह युति, वेध, मृत्युबाण आदि दोषों की शुद्धि उपरान्त यदि अभिवांछित मुहूर्त में शुद्ध विवाह-लग्न न निकलता हो, तो मुहूर्त ग्रन्थाचार्यों ने गोधूलि का लग्न ग्रहण करने की सम्मति प्रदान की है।
मांगलिक और मुहूर्त
गोधूलि काल-जब सूर्यास्त न हुआ हो (अर्थात् सूर्यास्त होने वाला हो) और गाय आदि चौपाय अपने-अपने गृहों को लौटते हुए अपने खुरों से पथ की धूलि को आकाश में उड़ाकर जाने लगें, तो उस काल को मुहूर्त्तकारों ने गोधूलि काल का नाम प्रदान किया है, इसे विवाहादि सब मांगलिक कार्यों में प्रशस्त कहा है। यह लग्न, मुहूर्त, पात, अष्टमभाव, जामित्रादि दोषों को नष्ट प्राय कर देता है।
नो वा योगो न मृतिभवनं नैव जामित्र दोषो ।
गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्वकार्येषु शस्ता ॥
-मुहूर्त चिन्तामणि