अभिजित मुहूर्त
पुराणानुसार अभिजित मुहूर्त काल में क्रियमाण सभी कर्म प्राय: सफल होते हैं। भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र की भान्ति अभिजित् मुहूर्त सब दोषों को नाश कर देता है-
दिनमध्यगते सूर्ये मुहूर्ते हि अभिजित् प्रभुः।
चक्रमादाय गोविन्दः सर्वान्दोषान्निकृन्तति ।।
दिनमान के अर्ध भाग में स्थानीय सूर्योदय जमा कर देने से अभिजित्| मुहूर्त का मध्य भाग निकल आता है। ‘नारद पुराण के अनुसार अभिजित् के मध्याह्न काल से १ घटी अर्थात् २४ मिनट पूर्व और मध्याह्न से २४ मिनट पश्चात् तक के समय को अभिजित् काल कहा जाता है। उदाहरण-मान लो, आपने २८ नवम्बर को अभिजित मुहूर्त का समय जानना है, तो उस दिन के दिनमान (२५/३० घटी पल) का अर्धभाग १२ घड़ी, ४५ पल होंगे। इस अर्ध भाग के ५ घंटे, ६ मिनट बनते हैं। इनके उस दिन में जालन्धर के सूर्योदय ७/१० घं. मि. में जमा कर देने से दुपै. १२ बजकर १६ मिनट पर अभिजित मुहूर्त का मध्यकाल होगा। इससे २४ मिनट पूर्व अर्थात् ११/५२ घं. मि. से अभिजित का प्रारम्भ काल तथा (१२/१६ + ००/२४ मिनट = १२ घं. ४० मिनट पर अभिजित का समाप्ति काल (घंटा मिंट) होगा।