उमा महेश्वर व्रत
यह व्रत भाद्र पूर्णिमा को किया जाता है। इस दिन उमा शंकर की पूजा करनी चाहिए। प्रातः शुद्ध हो करके भगवान शंकर की मूर्ति को स्नान कराके बेल पत्ते, फूल आदि से पूजन कर प्रार्थना करें तथा रात्रि को मन्दिर में जागरण करें। इस प्रकार यह व्रत १५ वर्ष तक करना चाहिए। अंत में पूजन उपरांत यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन दक्षिणा देकर व्रत समापन करें। इस व्रत को करने से महालक्ष्मी कीअत्यधिक कृपा प्राप्त होता है जिससे घर में आरोग्यता कीर्ति यश लाभ आदि अनेकों शुभाशुभ फल की प्राप्ति होती है।
कथा
एक बार विष्णु को दुर्वासा ऋषि ने शिव की माला दी। भगवान ने उसे गरुड़ को पहना दी। इससे दुर्वासा क्रोधित हो बोले कि हे विष्णु तुमने शंकर का अपमान किया है इससे तुम्हारेे पास से लक्ष्मी चली जायेगी और क्षीर सागर से भी हाथ धो बैठोगे तथा शेषनाग भी सहायता न देंगे। यह सुनकर भगवान विष्णु ने दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि उमा महेश्वर का व्रत करो तभी वस्तुएं मिलेंगी। तब भगवान ने ऐसा ही किया। व्रत के प्रभाव से लक्ष्मी आदि समस्त शापित वस्तुएं भगवान विष्णु को पुनः मिल गई।