महाशिवरात्रि
जो मनुष्य समस्त श्रावण मास में या श्रावण की शिवरात्रि पर शिवलिङ्ग का सविधि पूजन एवं व्रत करता है वह मनुष्य सभी प्रकार के सुख, सन्तान, धन, धान्य, विद्या, ज्ञान, सद्बुद्धि, दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
इस वर्ष 2020 में श्रावण महाशिवरात्रि व्रत 19 जुलाई 2020 को मनाया जाएगा इस दिन बाबा भोले शंकर का सविधि जलाभिषेक रुद्राभिषेक अथवा यथाशक्ति पूजन अर्चना करना अनेकों गुना फलदाई होता है। श्रावण मास की शिवरात्रि को अनेकों कांवरिया बाबा भोले शंकर पर गंगा जी से गंगाजल लाकर जलाभिषेक करते हैं।
जलाभिषेक शुभ समय:-
- प्रातः 5:40am से 8:25am तक
- प्रातः सूर्योदय से 7:52am तक (मिथुन लग्न) में विशेष शुभ रहेगा बाबा को जल चढ़ाना
- 11:40am से 12:35pm (अभिजीत मुहूर्त) तक
- सायं 19:28pm से 21:30pm तक प्रदोष काल
- रात्रि 21:30pm से 23:33pm तक (निशीथ काल)
- रात्रि 23:33 से 24:10 तक(महानिशीथकाल एवं चतुर्दशी में)
यह सभी समय बाबा के जल चढ़ाने का अत्यधि>क शुभ समय है वैसे तो बाबा पर जल किसी भी समय पर चढ़ाना सभी होता है परंतु शुभ मुहूर्त में चढ़ाया हुआ जल अत्यधिक फलदायक होता है।
पूजा एवं व्रत नियम:-
इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर बाबा की पूजा करें पूजा में गंगाजल दूध पंचामृत कलावा चंदन अक्षत चावल तिल भांग धतूरा एवं बेलपत्र बाबा पर अर्पित करें । अगर आपको व्रत भी करना है तो आप पूजन उपरांत संकल्प करें की बाबा हम महाशिवरात्रि का व्रत आपको प्रसन्न करने के लिए कर रहे हैं आप हमें शक्ति दे जिससे निर्वघन हमारा व्रत पूर्ण हो सके एवं हमारी मनोकामना आपकी कृपा से पूर्ण हो।
जो मनुष्य ‘शिव, शिव, शिव’ अथवा ओम नमः शिवाय इस प्रकार सर्वदा कहता रहता है, वह परम पवित्र और परम श्रेष्ठ हो जाता है और वह धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति करता है।
‘शिव’ शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य के समस्त प्रकार के पापों का नाश हो जाता है। अतः जो मनुष्य ‘शिव, शिव’ का उच्चारण करते हुए पूजा पाठ एवं व्रत करता है, वह अपने करोड़ों जन्म के पापों से मुक्त होकर शिवलोक’ को प्राप्त करता है।
‘शिव’ शब्द का अर्थ ‘कल्याण’ है। अतः जिसकी जिह्वा पर अहर्निश कल्याणप्रद शिव का नाम रहता है, उस का बाह्य और आभ्यन्तर शुद्ध हो जाता है और वह शिवसायुज्य प्राप्त करता है।’शिव’ यह दो अक्षरों वाला नाम ही परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है, इससे भिन्न और कोई दूसरा तारक ब्रह्म नहीं है-
तारकं ब्रह्म परमं शिव इत्यक्षरद्वयम् ।
नैतस्मादपरं किंचित तारकं ब्रह्म सर्वथा ॥