नाग पंचमी
श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है कहीं-कहीं पर जैसे राजस्थान जैसे प्रदेशों में कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नाग पंचमी मनाई जाती है इसमें परविधा पंचमी ली जाती है पंचमी सूर्योदय बाद त्रीमुहूर्त व्यापनी और षष्ठी सहित हो उस दिन मनानी चाहिए यदि तीन मुहर्तो से कम हो तो इससे पहले दिन में मनाने का विधान है|
नागपंचमी कर्मा
नाग पंचमी के दिन सर्पों को दूध से स्नान ध्यान और पूजन कर दूध पिलाने से वासुकी कुंड में स्नान करने का महा पुण्य प्राप्त होता है निज गृहः के द्वार मैं दोनों और गोबर के सर्प बना कर उनका दही दूर्वा कुषा गंध अक्षत पुष्प मोदक आदि से पूजा करने और ब्राह्मणों को भोजन करा कर एकभुक्त व्रत करने से घर में सभी प्रकारों का सर्प भय समाप्त हो जाता है। इसलिए नाग पंचमी के दिन हमें सर्पो का पूजन अवश्य करना चाहिए।
नाग पंचमी कथा एवं महातम
श्रावण मास में नागपंचमी की कथा के श्रवण चिंतन का बहुत बड़ा महत्व है इस कथा को सुनाने वाले सुमंत मुनी थे तथा सुनने वाले पांडव वंश के राजा सतानी थे| जब देवताओं तथा असुरो ने समुद्र मंथन द्वारा 14 रत्नों से उच्चै: श्रवा नामक अश्व रत्न प्राप्त किया था यह अश्व रत्ना अत्यंत ही श्वेतवर्ण एवं चमकदार था। उसे देखकर नाग माता कदृ तथा विमाता दोनों में रंग के संबंध में बहुत ही घोर वाद -विवाद उत्पन्न हो गया कद्रु ने कहा अश्व के केस श्याम वर्ण के हैं यदि मैं अपने कहे वाक्य में अस्त्य सिद्ध हो जाऊं तो मैं आपकी दासी बन जाऊंगी अन्यथा अगर ऐसा नहीं हुआ तो आपको मेरी दासी के रूप में मेरी सेवा करनी पड़ेगी कद्रु ने नागो के बाल के समान सूक्ष्म रूप धरकर अश्व के शरीर में आवेष्ठित होने का निर्देश दिया किंतु नागों ने असमर्थता प्रकट की इस पर कद्रु ने क्रुद्ध होकर इन नागो को श्रप दिया की पाण्डव वंश के राजा जन्मेजय नागयज्ञ करेंगे। उस यज्ञ में तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे नाग माता के श्राप से भयभीत नागों ने वासुकी के नेतृत्व में ब्रह्मा जी से श्राप निवृत्ति का उपाय पूछा ब्रह्मा जी ने निर्देश किया यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे उनका पुत्र आस्तिक आप सभी की रक्षा करेंगे ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को नागौ को इस प्रकार का वरदान दिया था तथा इसी तिथि पर आस्तिक मुनि ने नागों का परिरक्षण किया था अतः नाग पंचमी का यह बर्तन ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
हमारे धर्म ग्रंथों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है उस दिन व्रत के साथ हैं एक बार भोजन करने का नियम है पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्र बनाकर स्वर्ण रजत कास्ठ या मृतिका से नाग बना कर पुष्पगंध धूप दीप एवं विविध प्रकार के नैवेद्यम से सर्पों का पूजन होता है| इस पृथ्वी पर नागों की अनेक जातियों एवं प्रजातियां हैं भविष्य पुराण में नागों के लक्षण नाम स्वरूप जनजातियों का विस्तार को वर्णन मिलता है मणि धारी इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है भारत धर्म परायण देश है भारतीय चिंतन प्राणी मात्र में और आत्मा और परमात्मा के दर्शन करता है एवं एकता का अनुभव करता है| भारतीय परंपरा के अनुसार और देखने के नजरिए के अनुसार यह दृष्टि ही जीव मात्र मनुष्य पशु पक्षी कीट पतंग सभी प्रकार के जीवो में ईश्वर के दर्शन कराती है जीवो के प्रति आत्मीयता और दया भाव को विकसित करती है अतः नाग हमारे लिए पूज्य और संरक्षनिय हैं।
प्राणी शास्त्र के अनुसार नागों के असंख्य प्रजातियां हैं जिनमें विष भरे नागों की संख्या बहुत कम है नाग हमारी कृषि संपदा की कृषि नासको से रक्षा करते हैं नाग पंचमी का पर्व समस्त नागों के साथ जीवो के प्रति सम्मान उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है यह पर्व प्राचीन समय के अनुरूप आज भी प्रासंगिक है।