स्मार्त वैष्णव विचार
पंचाङ्ग में एकादशी व्रत प्रायः स्मार्त वैष्णव भेद से दो दिन अलग-अलग होते हैं, स्मार्त व्रत पहले दिन और वैष्णवों का दूसरे दिन लिखते हैं। इनका निर्णय धर्म-शास्त्रीय व्यवस्था से पंचाङ्गों में लिखा जाता है। यदि ५४ घटी से एक पल भी दशमी अधिक हो तो वैष्णव सम्प्रदाय का व्रत एकादशी को न होकर द्वादशी होता है। निम्बार्क सम्प्रदाय वाले कपाल वेध मानते हैं। स्मार्त्त लोग जिस समय अर्द्धरात्रि के समय अष्टमी हो उसी दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करते हैं और वैष्णव सम्प्रदाय वाले उदय व्यापिनी अष्टमी मानते हैं।
स्मार्त कौन और वैष्णव कौन?-
साधारण जन यह नहीं समझ पाते कि वे स्मार्त है या वैष्णव उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि श्रुति- स्मृति को मानने वाले सभी आस्तिक जन स्मार्त हैं।
वैसे तो द्विज-मात्र (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) जो गायत्री की उपासना करते हैं और वेद पुराण धर्मशास्त्र स्मृति को मानने वाले पंचदेवोपासक सभी स्मार्त हैं।
‘श्रुतिस्तु वेदो विझेपो धर्मशास्त्रं तु वैस्मृति: ।‘ (मनुः)
जो लोग यह समझते हैं कि मांस मदिरा प्याज लहसुन से दूर रहने वाले राम-कृष्ण-विष्णु के उपासक सब वैष्णव हैं, यह उनका भ्रम है। जिन लोगों ने वैष्णव गुरु से तप्त के मुद्रा द्वारा अपनी भुजा पर शंख चक्र अंकित करवाये हैं वे या जिन्होंने किसी वैष्णव सम्प्रदाय धर्माचार्य से विधिपूर्वक दीक्षा लेकर कण्ठी और तुलसी की माला धारण की हुई है वे ही वैष्णव कहला सकते है, उनको और विधवा स्त्रियों को दूसरे दिन वैष्णव व्रत करने का अधिकार है, अन्य को नहीं।